जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत क्यों ? मुस्लिम बहुल जिलों में लड़कियों का जीवन खतरे में समझिए समस्या को हमारे साथ

भुपेन्द्र सिंह कुशवाहा
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आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे कि हमारे भारत देश में आर्थिक जनसंख्या कानून की इतनी आवश्यकता क्यों है? हम अपने पाठकों को बताना चाहेंगे कि भारत में जनसंख्या कानून की मांग कोई नई मांग नहीं बल्कि कई दशकों से चर्चा का विषय बना हुआ है। साल 1992 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने संविधान का 79 वां संशोधन विधेयक पेश किया था । इस संशोधन विधेयक में सांसद एवं सभी राज्यों की विधानसभाओं में जिन जिन निर्वाचित प्रतिनिधियों के 2 से अधिक बच्चे थे उनके इस चुनाव को अयोग्य ठहराने का प्रस्ताव रखा गया था ।

हालांकि इस विधेयक पर हंगामा होना तथा तथा इस पर चर्चा ही नहीं हुई और आज तक पारित होने की राह देख रहा है उस दौरान सांसद एवं विधानसभाओं में कितने सांसदों एवं विधायकों के 2 से अधिक बच्चे थे इसका कोई सटीक संख्या उपलब्ध नहीं है। इस विधेयक को संसद में पारित करवाना इतना आसान ही नहीं था मगर केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार की जनसंख्या नियमन की एक अनूठी पहल का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इस प्रस्तावित संशोधन के बाद कई राज्यों ने अपने यहां की पंचायतों में इसे लागू कर दिया ।

साल 1992 के बाद जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने के लिए चर्चाओं का दौर बदस्तूर जारी है। और आपको बताते चलें कि साल 1992 से वर्तमान में लगभग 22 निजी विधेयक पेश किए जा चुके हैं  गौर करने वाली बात यह है कि सबसे पहले अप्रैल में 1992 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति विधेयक को प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने पेश किया था। जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही होगा कि प्रतिभा देवी सिंह पाटिल आगे चलकर हमारे देश की 12 वी राष्ट्रपति बनी ।

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आपको बताते चलें कि समय-समय पर जनसंख्या नीति विधेयक पेश करने वाली पार्टियों में भाजपा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम ,तेलुगू देशम पार्टी, बीजू जनता दल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसे दलों के सांसद शामिल है। और यह मांग अलग-अलग दलों के द्वारा समय-समय पर होती रहती है । सीधी और स्पष्ट भाषा में कहे तो जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग कोई एक पार्टी की नहीं बल्कि सभी पार्टियों के सांसद एवं विधायकों द्वारा समय-समय पर की जाती रही है तो यह गलत नहीं होगा।

साल 2010 में कांग्रेस की गुलाम नबी आजाद देश के परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्री थे इन्होंने भी जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत को स्वीकार किया था ।उस वक्त भी जनसंख्या कानून को लेकर लोकसभा में एक बहस हो चुकी है । स्पाइस में अलग-अलग सभी दलों के 45 सदस्यों ने अपने मत रखें। इस भैंस के दौरान महज चार सदस्यों ने जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर अपनी असहमति जाहिर की थी। विधायिका के इधर जनसंख्या असंतुलन के कारकों पर भी ध्यान देने की जरूरत है भारत की 1950 में कुल प्रजनन दर 5.9 प्रतिशत थी। 2020 आते-आते यह अपने न्यूनतम स्तर2.24 पर आ चुकी है । लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रजनन दर के मामले में देश ने अन्य देशों के मुकाबले बड़ी उपलब्धि हासिल की है। लेकिन अभी जनसंख्या को लेकर कई ऐसे महत्वपूर्ण विषय हैं जिन पर विचार करना बेहद जरूरी होगा।


यहां पर आपको एक निजी न्यूज़ पोर्टल ऑपइंडिया में प्रकाशित आर्टिकल के आंकड़ों के मुताबिक बताते हैं । जैसे कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है । यह जिला पश्चिम बंगाल का सबसे अधिक मुस्लिम बहुल है यहां प्रसिद्ध मुस्लिम आबादी का ही नहीं है बल्कि लड़कियों के विवाह को लेकर है 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार मुर्शिदाबाद के 18 वर्ष की उम्र से पहले लड़कियों के विवाह का प्रतिशत 55.4है । जो कि यह प्रतिशत देश में सबसे अधिकतम है यही नहीं जिले में सर्वेक्षण के दौरान 15 से 19 वर्ष की लड़कियां जो पहले से ही मां अथवा गर्भवती थी उनका प्रतिशत 20.6है । यही कहानी असम के घुबरी जिले की है यहाँ मुस्लिम आबादी 79.67 है । यहां अभी 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों का विवाह का प्रतिशत 50% से अधिक पाया गया है साथ ही 15 से 19 वर्ष की लड़कियां जो पहले से ही मां अथवा गर्भवती कि उनका 22.4 प्रतिशत मिला है ।


यह देश की सूची 2 जिलों की दुर्दशा नहीं है जहां ना सिर्फ समय से पहले लड़कियों के विवाह बड़े पैमाने पर हो रहे साथ ही बेहद कम उम्र में मां भी बन रही हैं । इस दिशा में रोकथाम के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए लेकिन वह प्रयास नाकाफी साबित हो रही है इसलिए कम उम्र में शादी करने से देश के कई हिस्सों में जरूरत से ज्यादा असंतुलन पैदा हो रहा है अथवा हो चुका है।

दरअसल कम उम्र में विवाह होना और मां बनने से जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ असंतुलन भी पैदा हो रहा है । यही नहीं इससे लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है । अब इसकी और ध्यान देने की आवश्यकता है । भारत में जनसंख्या पर अंकुश लगाने के साल 1951 से प्रयास जारी है 1951 से केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपने अपने तरीके से कई योजनाओं कार्यक्रम जागरूक अभियान और कानून के द्वारा इस पर लगाम लगाने की कोशिश करती रही है।


अतः अब हमारे देश को जनसंख्या नियंत्रण को लेकर एक ऐसी नीति की आवश्यकता है जो कि संपूर्ण देश को लाभान्वित कर सकें यह तो तय है कि जनसंख्या नीति को लेकर सभी दलों की एक राय कुछ गतिरोध जिन्हें सांसद व सर्वदलीय समिति का गठन से समझौते के माध्यम से दूर किया जा सकता है।


आपको बता दें कि सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक सुरेश चौहाणके जी के नेतृत्व में 18 फरवरी 2018 के रोज जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए भारत बचाओ यात्रा की शुरुआत जम्मू कश्मीर से शुरू की गई थी । इस यात्रा नहीं 70 दिनों में तकरीबन 20000 किलोमीटर की दूरी तय कर कर 10 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष जोड़ा था । इन लोगों के नाम एवं हस्ताक्षर करके सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग के लिए प्रस्तुत किए गए थे ।और इस यात्रा का समापन 22 अप्रैल को दिल्ली में हुआ था । हमारे देश का एकमात्र ही हिंदी टीवी चैनल है जो कि भारत को बचाने के लिए इस प्रकार की मुहिम को चलाने के लिए आगे आया और कहीं ना कहीं इस टीवी चैनल की मुहिम रंग ला रही है । 

हमारे देश को जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता है या नहीं कमेंट बॉक्स में जाकर अपने बहुमूल्य विचार हम तक जरूर पहुंचाएं ।


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