बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बागपत के खट्टा प्रहलादपुर गांव की रामायणकालीन और महाभारतकालीन ऐतिहासिक धरा पर कई आलौकिक मंदिरों का समय-समय पर निर्माण हुआ। इस धरा ने विभिन्न धर्मो और सम्प्रदायों को फलने-फूलने में अहम भूमिका अदा की।
- प्राचीन समय में विभिन्न राज्यों से जैन समाज के लोग शांतिनाथ भगवान के इस मन्दिर में दर्शनों के लिये आया करते थे
यह गांव बागपत जनपद में साम्प्रदायिक सौहार्द की अनुपम मिसाल के रूप में जाना जाता है। जहां एक और इस गांव में भगवान परशुराम के आश्रम के रूप में विश्वभर में विख्यात महेश मंदिर है तो वही दूसरी और जैन धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित भगवान शांतिनाथ का प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर भी है। प्राचीन काल में यह मन्दिर जैन समाज की आस्था का मुख्य केन्द्र था। इस मन्दिर के पास बने तीन मंजिल और दो मंजिल के स्थानक इस मंदिर की महत्ता को स्वयं बयां करते है। अनेकों सिद्ध जैन मुनियों और विद्धानों का इस स्थान पर आना जाना होता था। दो मंजिला शांतिनाथ भगवान के दिगम्बर जैन मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ और चन्दाप्रभु भगवान की मूर्तियां स्थापित है।
- मन्दिर के आस-पास स्थित दो मंजिला और तीन मंजिला के स्थानक इस मंदिर की ख्याति को बयां करने के लिये काफी है
प्राचीन काल में खट्टा प्रहलादपुर के मुख्य बाजार में स्थित इस मन्दिर के आस-पास के क्षेत्र में जैन समाज के सैंकड़ो परिवार रहते थे और व्यापार करते थे। दिगम्बर जैन मन्दिर के प्रबन्धक और प्रसिद्ध समाजसेवी राकेश जैन ने बताया कि वर्तमान में सिर्फ उनका जैन परिवार ही इस गांव में स्थायी रूप से निवास करता है। उन्होंने बताया कि मंदिर काफी प्राचीन है। उनकी कई पीढ़ियों द्वारा ही मंदिर की देखरेख की जा रही है। कहा कि उनको पांच पीढ़ियों तक ही जानकारी है। लक्ष्मणदास जैन इन पांच पीढ़ियों में सबसे पहले है। इनके बाद इनके पुत्र श्यामलाल जैन, उनके बाद मुसद्दीलाल जैन, शम्भूदयाल जैन, वीरसैन जैन, वर्तमान में राकेश जैन स्वयं, भाई दीपक जैन, राकेश जैन के पुत्र मयंक जैन और अभिषेक जैन मन्दिर की देखभाल करते है। बताया कि उनके पूर्वज देशी जड़ी बूटियों के बहुत अच्छे जानकार थे और दूर-दराज क्षेत्रों से लोग उनके पूर्वजो के पास से विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए जड़ी बूटियां लेने आया करते थे। बताया कि प्राचीन काल में भगवान शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर खट्टा प्रहलादपुर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। मंदिर में काफी मात्रा में दुर्लभ प्राचीन साहित्य था जिसमें से काफी साहित्य दीमक लगने से नष्ट हो चुका है।
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